दिव्य कथा का रसपान करते हुए आत्मिक शांति का अनुभव किया
अमेठी, संवाददाता: विकास खंड भादर के त्रिसुंडी गांव में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन कथावाचक पं. अवध नारायण शुक्ला ने गोकर्ण और धुंधकारी की कथा प्रस्तुत की। श्रोताओं ने इस दिव्य कथा का रसपान करते हुए आत्मिक शांति का अनुभव किया।

धुंधकारी की कथा और आत्मकथा का वर्णन
पं. अवध नारायण शुक्ला ने कथा में बताया कि कैसे पांडव पुत्रों की हत्या की योजना बनाई थी अश्वत्थामा ने, लेकिन भगवान श्री कृष्ण की कृपा से पांडवों की हत्या नहीं हो पाई। उन्होंने बताया कि शास्त्रों में यह भी उल्लेख है कि केवल दो व्यक्तियों को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था — एक भीष्म पितामाह और दूसरे काग भूसुंडी धुंधकारी। पं. शुक्ला ने धुंधकारी के प्रेत बनने और प्रेत योनि से मुक्ति के प्रसंग पर भी प्रकाश डाला।

उन्होंने बताया कि तुंगभद्रा नदी के तट पर आत्मदेव और उनकी पत्नी धुंधुली रहते थे। संतान न होने के कारण आत्मदेव दुखी रहते थे और एक ऋषि के मार्गदर्शन में फल खिला कर संतान प्राप्त की। धुंधुली ने फल को गाय को खिला दिया और अंत में उनका बेटा धुंधकारी पैदा हुआ। धुंधकारी के जीवन में कई दुःखद घटनाएँ घटीं, जिसमें उसने अपनी माँ को मारा और वेश्यागमन करने लगा। अंततः वह प्रेत बन गया।गोकर्ण ने त्रिकाल संध्या की पूजा कर धुंधकारी को प्रेत योनि से मुक्त किया।

अश्वत्थामा द्वारा पांडवों के हत्या का प्रयास
कथावाचक ने यह भी बताया कि अश्वत्थामा ने पांडवों की हत्या करने की योजना बनाई थी। वह रात्रि के अंधेरे में पांडवों के शिविर में पहुंचा और वहां सोते हुए द्रौपदी के पाँच पुत्रों के सिर काट दिए। जब अर्जुन को इसका पता चला तो उन्होंने अश्वत्थामा से बदला लेने के लिए अपनी ब्रह्मास्त्र को चलाया। कथा में अर्जुन और अश्वत्थामा के बीच हुए इस संघर्ष का भी उल्लेख किया गया, जिसमें अर्जुन ने भगवान श्री कृष्ण की सहायता से अश्वत्थामा को हराया।

कथा का रसपान
कथा का रसपान मुख्य जजमान जय गोविंद तिवारी ने किया, साथ ही श्याम नारायण, जयकृष्ण, संतोष, चौधरी सिंह,बटारे गुप्ता, जितेंद्र और अन्य गणमान्य श्रोता भी शामिल थे। श्रोताओं ने कथा का आनंद लिया और भक्ति में भावविभोर हो गए।
 
			 
		     
                                





















