कैसे मिलेगी कलियुग में वेद-विद्यारहित लोगों को प्रभु भक्ति

भादर अमेठी, संवाददाता: श्रीमद्भागवत कथा के पहले दिन भक्ति और मानव उद्धार के महत्व पर गूढ़ विचार प्रस्तुत किए गए। आचार्य अवध नारायण शुक्ला जी ने त्रिशक्ति धाम में कथा की शुरुआत ठाकुर जी की वंदना से की, और कथा के दौरान प्रभु भक्ति के महत्व पर प्रकाश डाला।कथा में परीक्षित प्रसंग का विशेष उल्लेख किया गया, जिसमें बताया गया कि कैसे परीक्षित ने अपनी इच्छाओं को त्यागकर समाज की भलाई के लिए कार्य किए थे।

आचार्य शुक्ला जी ने श्रोताओं को यह समझाया कि परीक्षित का जीवन हमें यह सिखाता है कि व्यक्ति को सदा समाज के हित में कार्य करना चाहिए।इसके बाद कथा वाचक ने बताया कि एक समय की बात है, जब नैमिषारण्य तीर्थ में 88 हजार ऋषियों ने सूतजी से पूछा कि इस कलियुग में वेद-विद्यारहित लोगों को प्रभु भक्ति कैसे मिलेगी।

उनके इस प्रश्न का उत्तर देते हुए श्री सूतजी ने नारद जी के संवाद का उल्लेख किया।नारद जी के प्रश्न पर विष्णु भगवान ने बताया कि मनुष्यों के दुखों का नाश और उनकी भलाई के लिए एक श्रेष्ठ व्रत है, जिसे नारद जी ने बताया था।

इस व्रत के माध्यम से भक्तों को जल्दी पुण्य और मनवांछित फल प्राप्त होता है।कथा के अंत में मुख्य यजमान पंडित जयगोविंद तिवारी ने ठाकुर जी की आरती उतारी और प्रसाद वितरित किया। इस अवसर पर उमेश तिवारी, पंकज, हरिओम तिवारी, साधव, गंगेश, सोनू, लालेंद सिंह, चौधरी सिंह, काशी सिंह, शंकर आदि प्रमुख रूप से उपस्थित थे और कथा का रसपान किया।

 
			 
		     
                                





















