आचार्य अवध नारायण शुक्ला वियोगी जी महाराज ने श्रीकृष्ण पुत्र प्रद्युम्न जन्म, स्यमंतक मणि का विस्तारपूर्वक किया वर्णन

अमेठी,संवाददाता : क्षेत्र के त्रिसुंडी गांव में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के अंतिम दिन मंगलवार को श्रद्धालुओं ने भक्ति और भावनाओं से ओतप्रोत वातावरण में भगवान श्रीकृष्ण से जुड़े प्रसंगों को सुना। कथा वाचक आचार्य अवध नारायण शुक्ला वियोगी जी महाराज ने मंगलवार को भगवान श्रीकृष्ण पुत्र प्रद्युम्न जन्म, स्यमंतक मणि और सुदामा चरित्र का विस्तारपूर्वक वर्णन किया।

प्रद्युम्न जन्म कथा का वर्णन
आचार्य वियोगी जी ने बताया कि जब भगवान शंकर के श्राप से कामदेव भस्म हो गए, तब उनकी पत्नी रति ने पति की पुनः प्राप्ति के लिए देवी पार्वती और भगवान शंकर की तपस्या की। देवी पार्वती ने वरदान दिया कि कामदेव भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र के रूप में यदुकुल में जन्म लेंगे। रति तब मायावती नाम से शंबरासुर के घर दासी बनकर सेवा करने लगी। समय आने पर रुक्मिणी जी ने अति सुंदर बालक प्रद्युम्न को जन्म दिया। शंबरासुर को जब यह ज्ञात हुआ कि उसका शत्रु जन्म ले चुका है, उसने शिशु को प्रसूतिगृह से उठाकर समुद्र में फेंक दिया। आचार्य ने बताया कि वह शिशु एक मछली के पेट में चला गया, जिसे बाद में एक मछुआरे ने पकड़ लिया। वहीं मायावती ने उस बालक को पाल-पोसकर बड़ा किया, और वही आगे चलकर भगवान श्रीकृष्ण पुत्र प्रद्युम्न कहलाए।

स्यमंतक मणि प्रसंग
महाराज ने बताया कि स्यमंतक मणि सूर्यदेव की एक दिव्य रत्न थी, जो सत्राजित नामक यदुवंशी राजा को दी गई थी। यह मणि प्रतिदिन आठ भार सोना उत्पन्न करती थी। श्रीकृष्ण ने सुझाव दिया कि इसे राजा उग्रसेन को सौंप देना चाहिए ताकि इसका लाभ पूरे यदुवंश को मिले, लेकिन सत्राजित ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया। बाद में सत्राजित के भाई प्रसेन के लापता होने पर श्रीकृष्ण पर चोरी का आरोप लगाया गया, जिसका श्रीकृष्ण ने सत्य की स्थापना के साथ निवारण किया।

सुदामा चरित्र पर भाव-विभोर हुए श्रोता
कथा के अंत में सुदामा चरित्र का वर्णन सुनकर श्रद्धालु भाव-विभोर होकर झूमने लगे। मुख्य यजमान पंडित जयगोविंद तिवारी के साथ रविंद्र त्रिपाठी, रामचरित्र पांडे, बीरेंद्र सिंह, रजनीश सिंह, गब्बर मिश्र, महेश शर्मा, चिरंजीव जायसवाल, भोला बरनवाल, दद्दन मिश्रा सहित अनेक श्रद्धालु उपस्थित रहे।






















