रास लीला में काम या संदेह की दृष्टि रखना भी पाप बताया गया
अमेठी,संवाददाता : विकासखंड भादर के त्रिसुंडी गांव में चल रही श्रीमद्भागवत कथा में रविवार को रुक्मणि विवाह और कंस वध का मार्मिक प्रसंग सुनाया गया। कथा सुनकर उपस्थित श्रद्धालु भगवान श्रीकृष्ण के जयकारों से भाव-विभोर हो उठे।

कथा वाचक आचार्य आशुतोष तिवारी जी महाराज ने कहा कि भगवान की लीलाओं में रास लीला सर्वोत्तम है। यह काम-वृद्धि की नहीं, बल्कि काम पर विजय की कथा है। उन्होंने बताया कि खुले मैदान में कामदेव ने भगवान पर अपने पूरे सामर्थ्य से आक्रमण किया, किंतु स्वयं ही पराजित हो गया। रास लीला में काम या संदेह की दृष्टि रखना भी पाप बताया गया।
गोपी गीत का उल्लेख करते हुए व्यासपीठ से कहा गया कि जब जीव में अभिमान आता है तो भगवान उससे दूर हो जाते हैं, लेकिन जब वह विरह में तड़पता है तो श्रीकृष्ण उस पर अनुग्रह कर दर्शन देते हैं।

आचार्य ने कंस वध प्रसंग सुनाते हुए बताया कि उसके अत्याचारों से पृथ्वी त्राहि-त्राहि कर रही थी। देवताओं की प्रार्थना पर भगवान कृष्ण ने अवतार लिया। कंस को यह आभास था कि उसका वध कृष्ण के हाथों ही होगा, इसलिए उसने बाल्यावस्था से ही उन्हें अनेक बार मरवाने की कोशिश की, पर हर बार असफल रहा। अंततः श्रीकृष्ण ने मथुरा पहुंचकर कंस का वध किया और प्रजा को उसके भय से मुक्त कराया।

रुक्मणि विवाह प्रसंग में बताया गया कि रुक्मणि माता लक्ष्मी का अवतार थीं और विदर्भ नरेश की पुत्री। वह श्रीकृष्ण से विवाह की इच्छुक थीं, परंतु उनके पिता व भाई इससे सहमत नहीं थे और उन्होंने विवाह में जरासंध व शिशुपाल को आमंत्रित कर लिया। यह सुनकर रुक्मणि ने दूत के माध्यम से श्रीकृष्ण को संदेश भेजा। इसके बाद हुए संघर्ष में विजय प्राप्त कर श्रीकृष्ण ने रुक्मणि का वरण किया।
कथा के समापन पर आरती और प्रसाद वितरण किया गया। इस अवसर पर मुख्य यजमान अजय कुमार, रोशनी मौर्य के साथ प्रशांत सिंह, जयप्रकाश, अनन्या मौर्य, कुंज मौर्य, मनीष कुमार, राम कलप, चंद्रावती, बचावन देवी, विद्या देवी, उषा, शकुंतला आदि ने कथा का रसपान किया।






















