कार्तिक मास की पवित्र चतुर्दशी पर हरि और हर के एकत्व का पर्व
डॉ. उमाशंकर मिश्रा,लखनऊ : हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बैकुंठ चतुर्दशी मनाई जाती है। यह दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु — दोनों की संयुक्त आराधना के लिए अत्यंत शुभ माना गया है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु को बैकुंठ धाम का मार्ग प्राप्त हुआ था, इसलिए इसे “बैकुंठ चतुर्दशी” कहा जाता है। यह तिथि हर और हरि के एकाकार का प्रतीक है। धर्मग्रंथों के अनुसार, इस दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु की आराधना से जीवन के समस्त कष्ट दूर होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। आज के दिन विशेष रूप से काशी विश्वनाथ मंदिर में भगवान शिव का पंचोपचार विधि से पूजन और अभिषेक किया जाता है।
बैकुंठ चतुर्दशी पूजा विधि
आज के दिन प्रातः स्नानादि कर शरीर व मन की शुद्धि करें। इसके बाद भगवान विष्णु और भगवान शिव का पूजन करें — भगवान शिव का पंचामृत एवं गंगाजल से अभिषेक करें।भगवान विष्णु को पीला चंदन, पीले पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें। भगवान शिव को चंदन, धतूरा, बेलपत्र, भांग और सफेद पुष्प चढ़ाएं। मंदिर में घी का दीपक जलाएं। व्रत का संकल्प लेकर दिनभर भगवान के नाम का स्मरण करें। दोनों देवों के मंत्रों का जप करें तथा आरती और क्षमा प्रार्थना के साथ पूजन पूर्ण करें।
बैकुंठ चतुर्दशी का महत्व
बैकुंठ चतुर्दशी का दिन भगवान हरि (विष्णु) और हर (शिव) के मिलन का पावन पर्व है। यह केवल पूजा या उपासना का ही नहीं, बल्कि सद्भाव, एकत्व और मोक्ष साधना का प्रतीक दिन है। इस दिन व्रत रखकर जो भक्त श्रद्धापूर्वक शिव और विष्णु की आराधना करता है, उसे जीवन में सुख, समृद्धि और अंततः मोक्ष की प्राप्ति होती है।





















