ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्रा
- विक्रम संवत: 2082
- शक संवत: 1947
- अयन: दक्षिणायन
- ऋतु: शरद ऋतु
- मास: कार्तिक
- पक्ष: कृष्ण
- तिथि: सप्तमी संध्या 5:48 बजे तक, तत्पश्चात अष्टमी
- नक्षत्र: आर्द्रा संध्या 6:26 बजे तक, तत्पश्चात पुनर्वसु
- योग: परिघ दोपहर 2:44 बजे तक, तत्पश्चात शिव
- राहुकाल: प्रातः 7:30 से 9:00 बजे तक
- सूर्योदय: प्रातः 6:14 बजे
- सूर्यास्त: संध्या 5:46 बजे
- दिशाशूल: पूर्व दिशा में
- व्रत/पर्व: कालाष्टमी
- विशेष जानकारी: आज सप्तमी के उपरांत अष्टमी है। अहोई अष्टमी का व्रत आज मनाया जा रहा है। चंद्रोदय रात्रि 11:05 पर होगा। चंद्रोदय व्यापिनी अष्टमी होने से व्रत आज ही रखा जाएगा।
धनतेरस विशेष – यमदीपदान का महत्व
धनतेरस के दिन ‘यमदीपदान’ अवश्य करें। इस दिन मृत्यु के देवता यमराज के निमित्त दीपदान करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है। यह वर्ष का एकमात्र दिन होता है जब केवल दीपदान के माध्यम से यमराज की आराधना की जाती है।
शास्त्रों का प्रमाण:
स्कंदपुराण के अनुसार:
“कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां निशामुखे ।
यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनिश्यति ॥”
पद्मपुराण के अनुसार:
“कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां तु पावके ।
यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनश्यति ॥”
इन दोनों श्लोकों में स्पष्ट किया गया है कि कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी की संध्या में यमराज के नाम से घर के बाहर दीपदान करने से अकाल मृत्यु से रक्षा होती है।
यमदीपदान की सरल विधि:
- गेहूं के आटे से बना हुआ एक बड़ा दीपक लें।
- स्वच्छ रुई से दो लंबी बत्तियां बनाएं और उन्हें दीपक में आड़ी तरह से रखें ताकि चार मुख स्पष्ट दिखें।
- दीपक को तिल के तेल से भरें और उसमें कुछ काले तिल डालें।
- प्रदोषकाल (संध्याकाल) में रोली, अक्षत, पुष्प से पूजन करें।
- मुख्य द्वार के बाहर खील या गेहूं की ढेरी बनाकर उस पर दीपक रखें।
- दीपक को दक्षिण दिशा की ओर रखते हुए जलाएं।
- ‘ॐ यमदेवाय नमः’ मंत्र बोलते हुए दक्षिण दिशा में प्रणाम करें।
यमदीपदान का मंत्र:
“मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन श्यामया सह ।
त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतां मम ॥”
भावार्थ: मैं सूर्यपुत्र यमराज को यह दीप अर्पित करता हूँ। वे अपने पाश और दण्ड से मेरी रक्षा करें एवं मेरे जीवन का कल्याण करें।