पितृपक्ष 2025 की तिथियाँ और श्राद्ध का महत्व
डॉ. उमाशंकर मिश्रा,लखनऊ : भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या (सर्वपितृ अमावस्या) तक का काल पितृपक्ष कहलाता है। इस समय को पूर्वजों के तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध कर्म के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है। ज्योतिषाचार्य डॉ. उमाशंकर मिश्रा के अनुसार, श्राद्ध कर्म तिथि विशेष पर करना चाहिए, जिसमें समय और मुहूर्त का विशेष ध्यान देना अत्यंत आवश्यक होता है।
शास्त्रसम्मत श्रेष्ठ काल और मुहूर्त —
1. अपराह्न काल (11:00 AM से 3:00 PM): श्राद्ध कर्म के लिए यह सबसे उपयुक्त समय है। इसी काल में तर्पण, पिंडदान, अन्नदान, वस्त्रदान और पूजन करना शास्त्रों में सर्वोत्तम बताया गया है।
2. कुतुप काल (11:30 AM से 12:30 PM): इस मुहूर्त को पाप शमन करने वाला समय माना जाता है। दिन के आठवें मुहूर्त को ‘कुतुप बेला’ कहा गया है।
3. अभिजीत मुहूर्त: प्रत्येक दिन (बुधवार को छोड़कर) मध्याह्न के आसपास का समय होता है। यह काल किसी भी कार्य के लिए शुभ माना जाता है। श्राद्ध कर्म में इसका विशेष महत्त्व है।
4. रोहिणी नक्षत्र: यदि श्राद्ध तिथि के दिन रोहिणी नक्षत्र हो, तो वह समय अत्यंत फलदायी होता है। नहीं होने की स्थिति में उपरोक्त कालों में ही कर्म संपन्न करें।