पितरों को जल, तिल, जौ आदि अर्पित कर उन्हें तृप्त करने की क्रिया को ही तर्पण कहते हैं
डॉ. उमाशंकर मिश्रा,लखनऊ : भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक चलने वाले इस 16 दिवसीय पितृपक्ष में तर्पण, पिंडदान, पंचबलि कर्म और ब्राह्मण भोज आदि किए जाते हैं। यहां प्रस्तुत है घर पर तर्पण करने की एक सरल विधि।
तर्पण किसे कहते हैं?
“तर्पण” का अर्थ है तृप्त करना। पितरों को जल, तिल, जौ आदि अर्पित कर उन्हें तृप्त करने की क्रिया को ही तर्पण कहते हैं। तर्पण के छह प्रमुख प्रकार होते हैं:
- देव-तर्पण
- ऋषि-तर्पण
- दिव्य-मानव-तर्पण
- दिव्य-पितृ-तर्पण
- यम-तर्पण
- मनुष्य-पितृ-तर्पण
घर पर तर्पण करने की विधि
(1) स्नान के बाद स्थान निर्धारण
पवित्र नदी में स्नान संभव न हो तो घर पर स्नान के बाद तर्पण करें। मुंह दक्षिण दिशा की ओर रखें। जल में जौ, काले तिल, लाल फूल मिलाएं और निम्न मंत्रों के साथ अर्पण करें।
(2) सामग्री एकत्र करें:
- शुद्ध जल
- कुशा का आसन
- ताम्रपात्र (या बड़ी थाली)
- कच्चा दूध
- गुलाब की पंखुड़ियाँ
- सुपारी, जौ, काले तिल
- जनेऊ
- कुशा की अंगूठी
(3) प्रारंभिक शुद्धिकरण:
आसन पर बैठकर तीन बार आचमन करें:ॐ केशवाय नमः | ॐ माधवाय नमः | ॐ गोविन्दाय नमः
(4) संकल्प लें:
अपना नाम और गोत्र लेकर संकल्प मंत्र बोलें:
“अथ श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्त्यर्थं देवर्षिमनुष्यपितृतर्पणं करिष्ये।”
(5) देव-ऋषि तर्पण:
पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें।
देवताओं को जल देने के लिए अंगुलियों के अग्रभाग का प्रयोग करें।
ऋषियों को जल दाएं हाथ से दें।
(6) दिव्य-मानव तर्पण:
उत्तर दिशा की ओर मुख करें।
जनेऊ को “कंठी” रूप में पहनें।
दो हथेलियों के बीच से जल गिराकर दिव्य-मानवों को तर्पण करें।
(7) पितृ तर्पण:
दक्षिण दिशा में मुख करें।
जनेऊ को दाहिने कंधे पर रखें।
थाली में काले तिल छोड़ें।
हाथ में तिल लेकर मंत्र पढ़ें:
“ॐ आगच्छन्तु में पितर इमं गृह्णन्तु जलांजलिम्।”
जल को अंगूठे और तर्जनी के बीच से अर्पित करें।
(8) नामों के साथ तर्पण:
गोत्र सहित पितरों का नाम लेकर कहें:
“गोत्रे अस्मत्पितामह (नाम) वसुरूपत् तृप्यताम्। इदं तिलोदकं गंगाजलं वा तस्मै स्वधा नमः।”
हर पितर को तीन-तीन बार जल दें।
- पूर्व दिशा में 16 बार
- उत्तर में 7 बार
- दक्षिण में 14 बार
(9) यदि नाम न ज्ञात हों:
रूद्र, विष्णु और ब्रह्मा का नाम लें।
भगवान सूर्य को जल अर्पित करें।
इसके बाद गुड़-घी की धूप, पंचबलि (5 प्रकार के भोग) अर्पित करें।
(10) समर्पण:
अंत में हाथ में जल लेकर कहें:
“ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः, ॐ विष्णवे नमः”
और यह समस्त तर्पण भगवान विष्णु को समर्पित करें।
तर्पण से लाभ
इस विधि से किए गए तर्पण से पितर प्रसन्न होते हैं, जीवन में शांति, सुख, आयु, स्वास्थ्य, संतान और समृद्धि के मार्ग खुलते हैं।