ज्योतिषाचार्य डॉ. उमाशंकर मिश्रा
विक्रम संवत – 2082
शक संवत – 1947
अयन – दक्षिणायन
ऋतु – शरद ऋतु
मास – आश्विन
पक्ष – कृष्ण
तिथि – चतुर्थी (सायं 3:57 तक), तत्पश्चात पंचमी
नक्षत्र – अश्विनी (सायं 5:58 तक), तत्पश्चात भरणी
योग – ध्रुव (रात्रि 9:55 तक), तत्पश्चात व्याघात
राहुकाल – दोपहर 1:30 से शाम 3:00 तक
सूर्योदय – प्रातः 5:51 बजे
सूर्यास्त – सायं 6:09 बजे
दिशाशूल – दक्षिण दिशा में
व्रत एवं पर्व विवरण
चतुर्थी का श्राद्ध
विशेष – भरणी श्राद्ध
16 दिन चलने वाला महालक्ष्मी व्रत पारण – 14 सितम्बर, रविवार को करें।
भरणी श्राद्ध – विशेष जानकारी
दिनांक: 11 सितम्बर 2025 (गुरुवार) आज आश्विन मास के पितृपक्ष में चतुर्थी अथवा पंचमी को भरणी नक्षत्र का आगमन हो रहा है। भरणी नक्षत्र को मृत्यु, पुनर्जन्म और आत्मिक गति से जुड़ा हुआ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन किया गया श्राद्ध पितरों को गयाश्राद्ध के समान फल प्रदान करता है।
- भरणी नक्षत्र में श्राद्ध करने से: श्राद्धकर्ता को उत्तम आयु, स्वास्थ्य और पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
- दान हेतु विशेष सुझाव: काले तिल एवं गौ (गाय) का दान करने से पितरों को सद्गति प्राप्त होती है और कर्मजन्य कष्टों में कमी आती है।
पुराणों में श्राद्ध का महत्व
कुर्मपुराण: श्रद्धा से किया गया श्राद्ध प्राणी को पापों से मुक्त करता है और संसार चक्र से मुक्ति दिलाता है।
गरुड़ पुराण: पितरों की तृप्ति से आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, वैभव, सुख, धन और धान्य की प्राप्ति होती है।
मार्कण्डेय पुराण: पितृगण तृप्त होकर श्राद्धकर्ता को दीर्घायु, सन्तति, धन, विद्या, राज्य और मोक्ष प्रदान करते हैं।
ब्रह्मपुराण: श्रद्धा और विश्वास से किया गया श्राद्ध न केवल पितरों को तृप्त करता है, बल्कि उस कुल के समस्त कष्टों का हरण करता है। पशु-पक्षियों की योनियों में पड़े पितरों तक भी पिण्डजल की एक-एक बूंद से पोषण पहुँचता है।