राधा जी की कृपा से भक्ति, वैराग्य और सुख की प्राप्ति सहज हो जाती है
डॉ. उमाशंकर मिश्रा,संवाददाता : आज भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि है, जिसे राधाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। जन्माष्टमी के 15 दिन पश्चात, ब्रज के रावल गांव में श्रीराधा जी का जन्म हुआ था। इसी उपलक्ष्य में यह व्रत रखा जाता है। राधाष्टमी का आध्यात्मिक महत्व जो साधक इस दिन राधा जी की आराधना करता है, उसका जीवन धन-धान्य से परिपूर्ण होता है। राधा जी की कृपा से भक्ति, वैराग्य और सुख की प्राप्ति सहज हो जाती है।
पुराणों में वर्णित राधा अष्टमी की महिमा
- स्कंद पुराण के अनुसार राधा, श्रीकृष्ण की आत्मा हैं। इसलिए भक्तगण उन्हें ‘राधारमण’ कहकर संबोधित करते हैं।
- पद्म पुराण में ‘परमानंद’ रस को राधा-कृष्ण के युगल स्वरूप के रूप में स्वीकार किया गया है। इनकी आराधना के बिना परमानंद की अनुभूति असंभव है।
- भविष्य पुराण और गर्ग संहिता के अनुसार, द्वापर युग में महाराज वृषभानु और माता कीर्ति के घर राधा जी का अवतरण हुआ।
- नारद पुराण कहता है कि राधाष्टमी व्रत करने से भक्त ब्रज के गूढ़ रहस्यों को जान लेता है।
- पद्म पुराण के सत्यतपा मुनि और सुभद्रा गोपी प्रसंग में राधा जी का स्पष्ट उल्लेख आता है। उन्हें और कृष्ण को ‘युगल सरकार’ की संज्ञा दी गई है।
घर में आर्थिक कष्ट हो तो करें यह विशेष साधना
भविष्य पुराण, स्कंद पुराण एवं अन्य ग्रंथों में वर्णित उपाय यदि घर में आर्थिक परेशानियाँ बनी रहती हैं, तो आज से – 31 अगस्त से 14 सितम्बर (आश्विन कृष्ण अष्टमी तक) – प्रतिदिन महालक्ष्मी पूजन करना अत्यंत शुभ माना गया है।
विधान:
- प्रतिदिन प्रातः और संध्या समय श्री लक्ष्मी माता का पूजन करें।
- यदि संभव हो तो श्री सूक्त का पाठ 16 बार करें।
- यदि पाठ कठिन हो, तो केवल “ॐ लक्ष्म्यै नमः” मंत्र का 16 बार जप करें।
- इसके पश्चात निम्न श्लोक का पाठ करें:
श्लोक:
“धनं धान्यं धराम हरम्यम्, कीर्तिम् आयुर्यशः श्रियम्,
दुर्गां दन्तीनः पुत्रान्, महालक्ष्मि प्रयच्छ मे।”
“ॐ श्री महालक्ष्म्यै नमः”
लाभ:
इस साधना से समय और शक्ति की अधिक आवश्यकता नहीं होती, परंतु इससे पुण्य, सुख और समृद्धि में निश्चित वृद्धि होती है।