भाजपा में जातीय समीकरणों की सुगबुगाहट, क्या खेमेबाजी के दौर में है पार्टी?
लखनऊ,संवाददाता : उत्तर प्रदेश की सियासत एक बार फिर जातीय खींचतान के मोड़ पर खड़ी नजर आ रही है। भाजपा के ठाकुर, लोध और कुर्मी विधायकों की बैठकों, कॉन्स्टिट्यूशन क्लब चुनाव के नतीजों और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य व ब्रजेश पाठक की मुलाकात ने संगठन के भीतर गहराते जातीय तनाव को हवा दी है। हालांकि इन बैठकों और मुलाकातों को ‘शिष्टाचार भेंट’ करार दिया गया, लेकिन राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज है कि भाजपा के भीतर अब स्पष्ट जातीय ध्रुवीकरण शुरू हो चुका है।
कॉन्स्टिट्यूशन क्लब चुनाव: योगी विरोधी खेमे की सक्रियता
दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया के सचिव पद पर भाजपा सांसद संजीव बालियान की हार को योगी आदित्यनाथ के प्रभाव में आई सेंध के रूप में देखा जा रहा है। इस चुनाव में गृह मंत्री अमित शाह के करीबी माने जाने वाले नेताओं ने राजीव प्रताप रूडी का विरोध किया, जो लंबे समय से पद पर काबिज थे। यह हार योगी समर्थक और विरोधी खेमों के बीच अंदरूनी संघर्ष का संकेत बन गई है।
ठाकुर विधायकों की बैठक: शक्ति प्रदर्शन या संदेश?
लखनऊ में हाल ही में हुई ठाकुर विधायकों की गोपनीय बैठक ने भाजपा में जातीय संतुलन की बहस को और तेज कर दिया है।
सूत्रों के अनुसार:
- बैठक का असली संचालन राजा भैया के हाथों में था।
- रामवीर सिंह और जयवीर सिंह इसके आयोजक जरूर थे, लेकिन रणनीतिक रूप से नेतृत्व क्षत्रिय शक्ति के इर्द-गिर्द केंद्रित रहा।
- योगी मंत्रिमंडल में राजा भैया की संभावित वापसी की चर्चाएं भी इसी के बाद तेज हुई हैं।
दूसरी ओर, बृजभूषण शरण सिंह ने इस बैठक की आलोचना करते हुए साफ संदेश दिया कि हर ठाकुर नेता योगी के साथ नहीं है।
गैर-ठाकुर नेताओं की लामबंदी
- केशव प्रसाद मौर्य (कुर्मी) और ब्रजेश पाठक (ब्राह्मण) की मुलाकात की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुईं।
- केशव मौर्य ने इसे शिष्टाचार भेंट कहा, वहीं पाठक ने वाजपेयी जी पर आधारित पुस्तक भेंट करने की बात कही।
लेकिन इन मुलाकातों को भाजपा के भीतर एक समानांतर शक्ति केंद्र के निर्माण की रणनीति माना जा रहा है।
जातीय समीकरण और भाजपा की चुनौती
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार: ठाकुर वर्ग को भाजपा में संगठन व सरकार में प्रमुख स्थान मिला है। वहीं, ओबीसी (पिछड़े वर्ग) का एक बड़ा हिस्सा हालिया लोकसभा चुनावों में भाजपा से छिटकता दिखा। 2022 विधानसभा चुनाव में नुकसान सीमित था, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में इसका प्रभाव साफ दिखा। ऐसे में गैर-ठाकुर नेताओं की एकजुटता ओबीसी वोट बैंक की वापसी की रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है। योगी के विरोधी खेमे की राजनीति मे बृजभूषण शरण सिंह, केशव मौर्य और ब्रजेश पाठक जैसे नेता अब सत्तारूढ़ खेमे के समानांतर एक मजबूत आवाज बनकर उभर रहे हैं। भले ही सार्वजनिक रूप से सभी नेता एकजुटता की बात करें, लेकिन संगठन के भीतर सामंजस्य की दरारें स्पष्ट हैं।