इलाज की आड़ में जहर का कारोबार, मेडिकल दुकानों से लेकर बॉर्डर पार तक फैला है नेटवर्क
लखनऊ,संवाददाता : जिस खांसी के सिरप को राहत की दवा समझकर डॉक्टर की पर्ची से मिलना चाहिए, वह अब बिना पर्ची, बिना जांच और बिना जिम्मेदारी के ज़हर की शीशी बन चुकी है। देश के बड़े मेडिकल थोक बाजारों से लेकर नेपाल और बांग्लादेश तक, कोडीन युक्त सिरप का धंधा खुलकर किया जा रहा है। सरकारें नींद में हैं और नशे का कारोबार अपनी रफ्तार पर।

दिल्ली के कश्मीरी गेट, सदर बाजार और चांदनी चौक से बड़ी खेप में सिरप खरीदे जाते हैं, और फिर यूपी के लखनऊ, बहराइच, गोंडा, बलरामपुर होते हुए अंतरराष्ट्रीय सीमाओं तक तस्करी कर दिए जाते हैं। एक बोतल जिसकी कीमत दिल्ली में 100 रुपये होती है, वही बोतल नेपाल-बांग्लादेश में 500 रुपये में बिकती है — सस्ती दवा, महंगा नशा। ताज्जुब की बात यह है कि लखनऊ की 3-4% मेडिकल दुकानों से हर महीने बिना रसीद, बिना पर्ची, दवाओं की खेप ‘गायब’ हो रही है। प्रतिबंध के बावजूद खुलेआम बिक्री हो रही है — जेनरिक के नाम पर ब्रांडेड, एक ही पर्ची से बार-बार खरीदारी, और झोलाछाप डॉक्टरों के नाम पर हजारों बोतलों की खपत।
8 अप्रैल 2024 को बहराइच बॉर्डर से 10,500 बोतलें, 30 मई को गोंडा से 3,750 बोतलें, और 25 सितंबर को लखनऊ से 4,500 कोडीन सिरप पकड़ी गईं। ये संख्याएं बता रही हैं कि समस्या गहरी है और निगरानी कमजोर। DRI, नारकोटिक्स विभाग और पुलिस की रिपोर्टों में खुलासा हुआ है कि इस पूरे गोरखधंधे के पीछे अंतरराष्ट्रीय ड्रग सिंडिकेट भी सक्रिय हो सकता है। सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि इन सिरपों का सबसे बड़ा शिकार किशोर और युवा वर्ग बन रहे हैं, जिनकी जिंदगियां बर्बादी की ओर बढ़ रही हैं।
अब सवाल यह है –
क्या मेडिकल दुकानों की मनमानी पर लगाम लगेगी?
क्या स्वास्थ्य विभाग जागेगा या फिर जहर बेचने वालों को चुपचाप लाइसेंस मिलता रहेगा?
और क्या हम, समाज के जिम्मेदार नागरिक, केवल तमाशबीन बने रहेंगे?
समय है जागने का, क्योंकि खांसी की दवा अब खामोशी से ज़हर बन चुकी है। अगली बार बिना पर्ची कोई सिरप मिले, तो समझिए – यह इलाज नहीं, लत है। सावधान रहें, सतर्क बनें।