पुराने लखनऊ के बड़ा शिवाला मंदिर का ऐतिहासिक महत्व, मुगल काल में हुई थी स्थापना
लखनऊ,संवाददाता : सावन के महीने विशेषकर सावन के सोमवार को लखनऊ के पुराने शहर स्थित बड़ा शिवाला मंदिर में भारी संख्या में श्रद्धालु उमड़ते हैं। यह शिवालय न केवल श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है, बल्कि इसका ऐतिहासिक महत्व भी अत्यंत गहरा है।
धार्मिक शोधकर्ता ऋद्धि किशोर गौड़ बताते हैं कि मुगल शासनकाल में जब लखनऊ के नवाब आसिफुद्दौला द्वारा गोमती तट पर बड़ा इमामबाड़ा बनवाया जा रहा था, उसी समय बड़ा शिवाला मंदिर का निर्माण भी प्रारंभ हुआ था।
पहले शिवलिंग, बाद में मंदिर
इस मंदिर की सबसे विशेष बात यह है कि यहां पर शिवलिंग की स्थापना पहले हुई और मंदिर की इमारत का निर्माण बाद में किया गया। इसका कारण यह बताया जाता है कि यह शिवलिंग इतना विशाल है कि यदि पहले मंदिर बन जाता तो इसे भीतर स्थापित करना संभव नहीं होता।
उत्तर भारत का सबसे बड़ा शिवलिंग
बड़ा शिवाला में स्थित शिवलिंग को उत्तर भारत का सबसे बड़ा शिवलिंग माना जाता है। इस प्रमुख शिवलिंग के चारों ओर 108 छोटे शिवलिंग भी स्थापित हैं। यह संयोग ही है कि जब इस विशाल शिवलिंग पर जलाभिषेक किया जाता है, तो वह जल सभी 108 शिवलिंगों तक भी पहुँचता है।
स्थापना में कश्मीरी पंडितों की भूमिका
बड़ा शिवाला की स्थापना कश्मीरी पंडितों द्वारा की गई थी। मंदिर परिसर के पास स्थित संकटा देवी मंदिर से इस स्थल का विशेष संबंध है। वर्तमान में मंदिर की देखरेख मंदिर समिति द्वारा की जा रही है, जिसके अध्यक्ष दिनेश टंडन और सदस्य राकेश केशव हैं।
रुद्राभिषेक और सावन की विशेषता
हर वर्ष सावन में मंदिर में भव्य रुद्राभिषेक का आयोजन होता है, जिसका संचालन पंडित विजय प्रदोष मंडल करते हैं। सावन के दिनों में यह मंदिर हजारों शिवभक्तों से भरा रहता है, जो विशेष पूजन, जलाभिषेक और दर्शन के लिए यहाँ एकत्र होते हैं।
























