घर में मंदिर हमेशा पूर्व या ईशान कोण (पूर्वोत्तर दिशा) में बनवाना चाहिए
डॉ उमाशंकर मिश्रा, संवाददाता : वास्तु शास्त्र के अनुसार घर का मंदिर घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। आधुनिक समय में मंदिर के स्वरूप में परिवर्तन आए हैं, परंतु मंदिर की पवित्रता बनाए रखने के लिए कुछ वास्तु नियमों का पालन अत्यंत आवश्यक है। ये नियम न केवल देवी लक्ष्मी की कृपा बनाए रखते हैं, बल्कि परिवार में सुख-समृद्धि और शांति का वास भी सुनिश्चित करते हैं।
मंदिर की दिशा: पूर्व या ईशान कोण सबसे उत्तम
घर में मंदिर हमेशा पूर्व या ईशान कोण (पूर्वोत्तर दिशा) में बनवाना चाहिए। यह दिशा देवी-देवताओं का वास स्थान मानी जाती है और यहीं से सूर्य उदय होता है, जो ऊर्जा का मुख्य स्रोत है। इस दिशा में मंदिर स्थापित करने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है मंदिर का स्थान हमेशा साफ-सुथरा होना चाहिए। वहां जूते-चप्पल न पहनें, गंदे कपड़े लेकर न जाएँ और प्रतिदिन दीपक व अगरबत्ती जलाकर वातावरण को सात्विक बनाए रखें।
मूर्तियों की स्थापना: दीवार से सटाकर न रखें
मूर्ति या तस्वीर को दीवार से सटाकर नहीं रखना चाहिए। मूर्तियों को दीवार से थोड़ी दूरी पर रखें ताकि चारों ओर से हवा-प्रवाह हो सके। यह नियम ऊर्जावान वातावरण बनाए रखने में सहायक होता है। पूजा स्थान में दो शिवलिंग, दो शंख, दो शालिग्राम, तीन गणेश या तीन देवी प्रतिमाएँ नहीं रखनी चाहिए। वास्तु शास्त्र के अनुसार ऐसा करना नकारात्मक ऊर्जा को आमंत्रित करता है। भगवान को चढ़ाए गए फूल या मालाएं जब सूख जाएं, तो उन्हें तुरंत हटा दें। सूखे फूल मंदिर में रखने से वास्तु दोष उत्पन्न हो सकता है, जिससे घर की सुख-शांति प्रभावित हो सकती है।
मूर्ति के नीचे आसन अवश्य बिछाएं
मूर्ति या तस्वीर स्थापित करने से पहले स्वच्छ कपड़े का आसन बिछाना आवश्यक है। चाहे आप मंदिर लकड़ी के मंदिर में बनाएं या अलमारी में स्थान बनाएं, मूर्तियों के नीचे कपड़ा या आसन ज़रूर हो यदि पूजा घर उसी कमरे में है जहां आप सोते हैं, तो यह सुनिश्चित करें कि बेड की दिशा ऐसी न हो कि पैरों का रुख मंदिर की ओर हो। मंदिर और बेड के बीच उचित दूरी बनाए रखना आवश्यक है।