पीड़ितों पर तत्काल उनकी पहचान “सत्यापित” करने के लिए डाला जाता है दबाव
दिल्ली,संवाददाता : आपके पास एक ऐसी कॉल आती है, जिस पर दूसरी ओर से बोल रहे व्यक्ति खुद को बैंककर्मी बताते हैं। वे आपका नाम जानते है। यहां तक कि आपका क्रेडिट कार्ड नंबर भी उन्हें पता होता है। वे कहते हैं कि आपके बैंक खाते में कुछ “असामान्य गतिविधि” हुई है और उन्होंने कुछ ही देर पहले आपको एक वन टाइम पासवर्ड (ओटीपी) भेजा है ताकि वे आपकी पहचान सत्यापित करके आपकी मदद कर सकें।
आप कोड बताकर निश्चिंत हो जाते हैं, लेकिन इतने में आपके सारे पैसे खाते से निकाल लिये जाते हैं और बैंक यह कहते हुए भरपाई से इनकार कर देता है कि आपने स्वेच्छा से अपना पासकोड साझा करके गोपनीयता की शर्तों का उल्लंघन किया है। ऐसा केवल आपके साथ नहीं होता। हाल में ऑस्ट्रेलिया और दूसरी जगहों पर ऐसे मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है। साइबर अपराधी डिजिटल और वास्तविक दुनिया के हथकंडों का इस तरह इस्तेमाल कर रहे हैं कि आपके साथ कब धोखाधड़ी हो जाए, पता ही नहीं चल पाता।
इस तरह के मामलों की शुरुआत जालसाजी वाले ईमेल या फर्जी ऐप से नहीं होती। इनकी शुरुआत डाटा चुराने से होती है। आप कोई गलती करते हैं और उसी दौरान आपका डाटा चुरा लिया जाता है। क्वांटास की हाल की घटना इसका उदाहरण है, जिसमें 57 लाख ग्राहकों की जानकारी उजागर हो गई। कभी-कभी, व्यक्तिगत डाटा को तीसरे पक्ष के जरिये बेचा जाता है। नाम, फोन नंबर, ईमेल और यहां तक कि कार्ड की जानकारी भी नियमित रूप से लीक करके ऑनलाइन कारोबार किया जाता है।
एक बार यह जानकारी मिल जाने के बाद, धोखेबाज अपना काम शुरू कर देते हैं। फोन कॉल किसी बैंक कर्मी के साथ वास्तविक बातचीत की तरह होती है, वो भी शायद एक नकली कॉलर आईडी के साथ। पीड़ितों पर तत्काल उनकी पहचान “सत्यापित” करने के लिए दबाव डाला जाता है। लोग अक्सर अपना ओटीपी बता देते हैं, जिससे धोखेबाजों के लिए उनके कार्ड विवरण का उपयोग करके धोखाधड़ी करना आसान हो जाता है।