उल्टा बहाव नगर की अलौकिक ऊर्जा और दैवीय हस्तक्षेप का प्रमाण माना जाता है
वाराणसी,संवाददाता : भारत की सांस्कृतिक राजधानी कही जाने वाली काशी अपने चमत्कारों और आध्यात्मिक रहस्यों के लिए विश्वविख्यात है। इन्हीं रहस्यों में से एक है — गंगा नदी का उल्टा बहाव। एक ऐसी घटना, जो वैज्ञानिक नियमों से इतर लगती है, परंतु धार्मिक और पौराणिक दृष्टिकोण से इसका गहरा महत्व है। काशी में मणिकर्णिका घाट से लेकर तुलसी घाट तक लगभग 1.5 किलोमीटर की दूरी में गंगा नदी उल्टी दिशा में बहती है। इस अलौकिक क्षेत्र में लगभग 45 घाट स्थित हैं, जिनमें हर घाट की अपनी ऐतिहासिक और धार्मिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं।

क्या कहती है पौराणिक कथा?
पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब गंगा स्वर्ग से पृथ्वी पर उतरी थीं, तो उनका प्रवाह अत्यंत तीव्र था। उसी समय वाराणसी में भगवान दत्तात्रेय तपस्या में लीन थे। गंगा के तीव्र प्रवाह में उनका आसन और कमंडल बहकर डेढ़ किलोमीटर आगे चला गया। गंगा ने जब यह देखा, तो उन्होंने भगवान दत्तात्रेय से क्षमा याचना करते हुए उल्टी दिशा में बहना प्रारंभ किया ताकि वे उनकी वस्तुएं लौटा सकें। तभी से यह स्थान गंगा के उल्टे बहाव के लिए जाना जाता है। यह उल्टा बहाव, भौतिक रूप से भले ही अल्प दूरी तक सीमित हो, लेकिन धार्मिक दृष्टिकोण से यह स्थान अत्यंत पावन और मंगलकारी माना गया है।
काशी: एकमात्र ऐसा स्थान
काशी (वाराणसी) को “मोक्ष नगरी” कहा जाता है। मान्यता है कि यहां मृत्यु भी मुक्ति का मार्ग बन जाती है। गंगा का उल्टा बहाव इस नगर की अलौकिक ऊर्जा और दैवीय हस्तक्षेप का प्रमाण माना जाता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
कुछ भूगर्भीय विशेषज्ञ इसे गंगा के बहाव में आने वाले स्थानीय भू-आकृतिक बदलावों और घाटों की रचना के कारण मानते हैं। लेकिन यह तथ्य कि यह घटना सिर्फ काशी में ही होती है, आज भी एक रहस्य बनी हुई है।
धार्मिक मान्यता ही प्रमुख आधार
हालांकि वैज्ञानिक दृष्टिकोण कुछ तर्क देते हैं, लेकिन काशी में गंगा के उल्टे बहाव को लेकर श्रद्धालुओं की आस्था पूर्णतः पौराणिक और आध्यात्मिक मान्यताओं में रची-बसी है। यह विश्वास है कि गंगा स्वयं भी काशी के प्रति समर्पित हैं — वे यहां विनम्र होकर उल्टी बहती हैं, अपने भक्तों की सेवा में।