शहर से गांव तक मातम और मजलिसों में दी गई कर्बला के शहीदों को श्रद्धांजलि
बाराबंकी, संवाददाता : मोहर्रम की पांचवीं तारीख पर बाराबंकी का माहौल गमगीन नजर आया। शहर की गलियों से लेकर गांवों तक इमाम हुसैन (अ.स.) और कर्बला के शहीदों की याद में अज़ादारी का माहौल रहा। जगह-जगह मजलिसों का आयोजन हुआ और मातमी जुलूसों में “या हुसैन” की गूंज ने फिज़ा को शोकपूर्ण बना दिया।पांचवीं मोहर्रम को पारंपरिक अलम जुलूस फज़लुर्रहमान पार्क से आरंभ हुआ, जो कर्बला वजहन शाह होते हुए पीर बटावन पर समाप्त हुआ। जुलूस में शामिल छोटे-छोटे बच्चे हाथों में अलम थामे हुए, मातमी नारों के साथ पैदल चल रहे थे। इस दौरान कई अंजुमनों ने नौहाख्वानी और सीनाजनी कर शहीदों को श्रद्धांजलि दी। जिले के विभिन्न इलाकों में आयोजित मजलिसों में उलेमा ने कर्बला की घटनाओं को भावुक अंदाज़ में पेश किया। गुलाम अस्करी हाल, देवा रोड पर मौलाना मुराद रज़ा ने कहा, “जिसका ईमान पाक हो और जो खुदा की राह पर अमल करे, उसके सामने कोई ताक़त टिक नहीं सकती।” मजलिस में शहीदों के मसायब सुनकर लोग भावुक हो उठे।
शायरों और अंजुमनों ने पेश की अकीदत
अंजुमन “गुलाम-ए-अस्करी” द्वारा नौहा और मर्सिया पढ़े गए। शायर डॉ. रज़ा मौरानवी, हाजी सरवर अली करबलाई और अहमद रज़ा ने भी अपने कलाम से श्रद्धांजलि दी। वहीं, कटरा स्थित इमामबाड़ा मीर मासूम अली में मौलाना जाबिर जौरासी ने पांचवीं मजलिस को संबोधित किया, जिसकी शुरुआत तिलावत-ए-कुरआन से हुई।
कर्बला का संदेश: सच्चाई के लिए संघर्ष
आगा फ़ैयाज़ मियाँ जानी के अज़ाखाने में मौलाना क़मर अब्बास ने कहा, जो अपनी बातों से लोगों को रौशन करे, वही सच्चा इमाम होता है। वहीं रसूलपुर स्थित मजलिस में मौलाना आलिम मेहदी ने माताओं की अज़मत पर प्रकाश डालते हुए कहा, मां-बाप की एक रात की खिदमत, एक साल के जेहाद के बराबर है।
इमामबाड़ों में एक साथ श्रद्धा और सन्नाटा
वक़्फ़ नवाब अमजद अली खान इमामबाड़ा में मौलाना अब्बास मेहदी रज़वी ‘सदफ’ ने कहा, जहां इंसाफ़ नहीं होता, वहां तबाही मुकद्दर बन जाती है। बेगमगंज, अस्करी नगर, नासिर साहब, नवाब साहब, हैदर हाउस सहित अनेक इमामबाड़ों में देर रात तक मजलिसें, मर्सिये और मसायब का दौर चलता रहा।
गांवों तक फैला मातमी माहौल
तकिया, जैदपुर, फतेहपुर, मझगवां, हैदरगढ़, देवा, सट्टी बाज़ार, मित्तई, मोतिकपुर, देवरा, किंतूर, मौथरी, बेलहरा सहित दर्जनों गांवों में भी मजलिसों और जुलूसों का आयोजन हुआ। ग्रामीण इलाकों में भी श्रद्धालु काले लिबास में मातम करते नजर आए।