केंद्र सरकार ने 2014 में जैन समाज को अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में किया था अधिसूचित
भोपाल,संवाददाता : मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने जैन समाज को हिंदू विवाह अधिनियम के तहत कवर करते हुए एक महत्वपूर्ण फैसला दिया। कोर्ट ने इंदौर परिवार न्यायालय द्वारा जैन धर्मावलंबी के तलाक आवेदन को खारिज करने का आदेश निरस्त कर दिया और कहा कि जैन समाज पर भी हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधान लागू होते हैं।
जस्टिस एसए धर्माधिकारी और जस्टिस संजीव एस. कालगांवकर की युगलपीठ ने इंदौर परिवार न्यायालय के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें जैन समाज को हिंदू धर्म से अलग मानते हुए तलाक की अर्जी खारिज कर दी गई थी। दरअसल, 8 फरवरी को इंदौर परिवार न्यायालय ने जैन समाज को अल्पसंख्यक समुदाय मानते हुए उनके धार्मिक आस्थाओं और पूजा पद्धति को ध्यान में रखते हुए तलाक के आवेदन को नकार दिया था। इसके खिलाफ जैन दंपती ने हाईकोर्ट में अपील की थी। हाईकोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि केंद्र सरकार ने 2014 में जैन समाज को अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में अधिसूचित किया था, लेकिन इस अधिसूचना में किसी भी कानून को संशोधित करने या जैन समाज को किसी कानून से बाहर रखने का कोई प्रावधान नहीं था।
कोर्ट ने इस मामले में सिविल प्रक्रिया संहिता का हवाला देते हुए यह भी कहा कि अगर किसी कानून की वैधता पर सवाल खड़ा होता है तो निचली अदालत को हाईकोर्ट से राय लेनी चाहिए। इसके साथ ही, अदालत ने परिवार न्यायालय को यह केस दोबारा सुनने का आदेश दिया। यह फैसला जैन समाज के लिए एक बड़ी राहत का कारण बना है और अब जैन दंपती को तलाक के आवेदन पर हाईकोर्ट के आदेश के तहत फिर से सुनवाई का अवसर मिलेगा।























